Saturday, July 30, 2011

दर्द

http://online-hindi-sangrah.bl​ogspot.com/
"दर्द होता रहा छटपटाते रहे ,
आईने से सदा चोट खाते रहे !
वो वतन बेचकर मुस्कुराते रहे ,
हम वतन के लिए सिर कटाते रहे !”
http://online-hindi-sangrah.bl​ogspot.com/

No comments:

Post a Comment